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आउटसोर्सिंग कर्मियों के लिए बना आयोग, राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद ने इसको सराहा




नियमित भरतीयों पर आउटसोर्सिंग लागू न करने को चेताया


सरकार ने आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के संबंध में आ रही समस्याओं पर अपनी कैबिनेट में निर्णय ले लिया है हम लोगों की हमेशा उच्च स्तर की बैठकों में यह मांग रहती थी की आउटसोर्सिंग की कंपनियां हमारे कर्मचारियों का शोषण करती हैं उनको 11 माह बाद फिर से भरती के नाम पर शोषण होता है और कभी भी निकाल कर बाहर कर देते हैं ।समय से भुगतान नहीं होता है जबकि सरकार से भुगतान समय से मिल जाता है उनका ईपीएफ का पैसा भी नहीं कटता है उनका भुगतान सीधे उनके खातों में जाना चाहिए यह सब सुझाव हमारे बैठकों में हुआ करते थे। हम समझते हैं कि इन सब का निदान काफी हद तक हुआ है सरकार के इस निर्णय का हम लोग फौरी तौर पर स्वागत करते हैं ।

परंतु यह भी बता दे की आउटसोर्सिंग की प्रक्रिया जब शुरू की गई थी तब उन पदों पर की गई थी जो नियमित प्रकृति के नहीं थे टेंपरेरी पद सृजन हुआ करते थे इसी प्रकार चतुर्थ श्रेणी में भी था परंतु इन आदेशों को देखने से लगता है की नियमित प्रकृति के भी पदों पर आउटसोर्सिंग जैसा दिखाई पड़ रहा है यदि ऐसा है तब कहीं ना कहीं उच्च अधिकारियों की मंशा ठीक नहीं है सभी लोग यह भी जानते हैं कि आउटसोर्सिंग का कर्मचारी जिम्मेदारी पदों पर निभाकर उतनी गोपनीयता और पद के अनुरूप गंभीरता के तहत काम नहीं कर पाता है क्योंकि उसे हमेशा नौकरी जाने का भय रहता है। इससे प्रदेश के कार्यों के एग्जीक्यूशन का नुकसान होगा। कार्यों में जिम्मेदारी पूर्ण भावना नहीं आ पाएगी। 

हमारी बैठकों में यह भी समस्या उठाई गई की तीन या चार साल के बाद उनको कुछ अंक दिए जाएं जो सीधी भर्ती में काउंट हो और लगभग 10 साल के बाद बे हर हालत में नियमित नियुक्ति की ओर बढ़ जाए ऐसा ना हो कि वह 9 साल ,,15 साल की आउटसोर्सिंग सेवाएं करने के बाद निकाल कर बाहर कर दिए जाएं फिर उनकी स्थिति और भी दयनीय हो जाएगी फिर वह किसी काम के नहीं रहेंगे।

उक्त बयान संयुक्त रूप से राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष हरि किशोर तिवारी, महामंत्री शिव बरन सिंह यादव, कार्यवाहक अध्यक्ष एन डी द्विवेदी, कार्यवाहक महामंत्री डॉ नरेश द्वारा जारी किया गया।





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