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दुखद: लखनऊ के पूर्व मेयर और अटल जी के मित्र दाऊ जी का निधन

 


तीन बार नगर प्रमुख रहे दाऊजी गुप्ता का रविवार को निधन हो गया। वह 81 वर्ष के थे। तीन दिन पहले ही उन्होंने कोरोना से जंग जीती थी। पूर्व नगर प्रमुख के पौत्र सात्विक ने बताया कि उनके बाबा को वैक्सीन की दोनों डोज लग चुकी थीं। इसके बाद वह 13 अप्रैल को संक्रमित हो गए और होम आइसोलेशन में रहे। तीन दिन पहले जांच में रिपोर्ट निगेटिव आ गई, पर उनकी तबीयत नहीं सही हुई। उनको बहुत कमजोरी थी और कुछ खा-पी भी नहीं पा रहे थे। रविवार दोपहर उनका सुगर बढ़ गया। अस्पताल ले जाते वक्त रास्ते में ही उनकी मृत्यु हो गई। सावित्व के ने बताय कि पूर्व नगर प्रमुख के दो बेटे और एक बेटी है। बेटी दिल्ली में है वह लखनऊ आ रही है। 



दाऊजी गुप्ता तीन बार शहर के नगर प्रमुख रहे। पहली बार वह 1971 में नगर प्रमुख बने। सालभर के बाद प्रशासक काल आ गया। इसके बाद व दोबारा 1973 में नगर प्रमुख बने। उस वक्त नगर प्रमुख का कार्यकाल एक साल का होता था। दूसरी बार जब वह नगर निगम थे तो उसी बीच नगर प्रमुख का कार्यकाल बढ़कर तीन साल का हो गया। इसके बाद तीसरी बार वह 1989 में नगर प्रमुख बने और 1992 तक रहे। 


जन्म-15 मई 1940

मृत्यु-02 मई 2021

अटल के सखा दाऊ भी छोड़ गए लखनऊ का साथ

पिछले वर्ष लालजी टंडन गए। पिछले महीने योगेश प्रवीन गए और अब राजधानी के तीन बार मेयर रहे राजनेता और समाजसेवी डॉ. दाऊजी गुप्ता भी लखनऊ का साथ छोड़ गए। रविवार अपराह्न लगभग पौने तीन बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। इसी के साथ लखनऊ वालों से हमेशा के लिए छिन गया छोटे कद लेकिन विराट व्यक्तित्व वाला चलता फिरता ज्ञानकोष, जिसकी उपलब्धियों को शब्दों में समेटना बहुत मुश्किल है।  


शालीन और शिष्ट तथा सौम्य सियासी किरदार। विदेशों में हिंदी पर काम। बौद्ध दर्शन के विद्वान। कई भाषाओं के जानकार। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, लोकतंत्र सेनानी, पूर्व एमएलसी, कवि और राजनेता के साथ सामाजिक कार्यकर्ता तथा गोवा मुक्ति संग्राम में भागीदारी तथा अमेरिका की ‘यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयार्क’ तथा ‘यूनिवर्सिटी ऑफ मेरीलैंड’ में अध्यापन। पिछड़ों को अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष करने वाले सामाजिक योद्धा और भी बहुत कुछ। कांग्रेस के साथ राजनीतिक यात्रा शुरू की। इंदिरा गांधी से मतभेद हुआ तो चंद्रभानु गुप्त के साथ कांग्रेस से अलग हो गए। कांग्रेस में लौटे लेकिन आपातकाल विरोधी आंदोलन में जेल भेज दिए गए। कुछ वक्त के लिए बसपा में भी रहे। लेकिन दलों में रहते हुए भी उनकी शख्सियत कभी दलगत सीमा में बंधी नहीं रही।


अटल के सखा

घोर समाजवादी और क्रांतिकारी विचारों तथा वामपंथी रुझान होने के बावजूद उनकी पहचान पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के किशोरावस्था के सखा की भी थी। ऐसे सखा की कि जब तक अटल लखनऊ में रहे तो हर शाम साथ गुजरी। शंभू हलवाई की रबड़ी और मलाई के साथ थे तो कभी चौक में ठंडाई तथा चाट के साथ। हालांकि वे भाजपा में कभी नहीं रहे। अटल के खिलाफ चुनाव भी लड़े, लेकिन दोस्ती अंतिम वक्त तक पक्की रही। जब-तब अटल जी का फोन आ जाता था और दोनों लोग पुराने दिनों में खो जाते थे। दाऊ जी नाम कब पड़ा तो एक बार खुद उन्होंने ‘अमर उजाला’ से बात करते हुए बताया था कि घर में दुलारा होने के कारण लोग प्यार से दाऊ कहने लगे और फिर यही दाऊ जी उनकी पहचान हो गई। यह नाम उन्हें चाहे जैसे मिला था लेकिन उनकी पहचान लखनऊ के दाऊ (बड़े भाई) जैसी ही हो गई थी। पर, कोरोना की क्रूर छाया के दुष्प्रभावों ने आखिरकार लखनऊ से उनके दाऊ को भी छीन लिया। 


13 दिन बाद 82वां जन्मदिन

उन्होंने कोरोना वैक्सीन की दोनो डोज लगवा ली थी। उनके पुत्र लंदन में रह रहे डॉ. पद्ममेश बताते हैं कि पिताजी ने 3 अप्रैल को दूसरी डोज लगवाई थी। उसके बाद 17 अप्रैल को वह पॉजिटिव हो गए तो घर पर आइसोलेट हो गए। घर पर दवाइयां कीं। तीन दिन पहले उनकी रिपोर्ट निगेटिव भी आ गई थी लेकिन वह कमजोर काफी हो गए थे। उन्हें शुगर भी था। अचानक उनका शुगर लेवल बढ़ गया और तबियत खराब हो गई। उन्हें केजीएमयू ले जाया गया, लेकिन जब तक चिकित्सक देखते तब तक उनकी मृत्यु हो गई। ठीक 13 जिन बाद उनका 82वां जन्मदिन होता। उनका जन्म 15 मई 1940 को हुआ था।


तैयार कर रहे थे लखनऊ का इतिहास

फरवरी में उन्होंने ‘अमर उजाला’ से बातचीत के दौरान कहा था, ‘दस साल अभी और काम करना है। इसके बाद विश्राम लूंगा।’ पर, हर बात पर खरे उतरने वाले दाऊ जी इस वायदे पर टिके नहीं रह सके। राजधानी का बड़ा व्यापारिक घराना होने के बावजूद  पिता और बाबा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे। पिछले दो दशक को छोड़ दें तो उससे पहले शायद ही कोई ऐसी राजनीतिक हस्ती ऐसी रही होगी जो नाका हिंडोला स्थित नंद निकेतन न आई हो। उनके पास दुर्लभ चित्रों का भंडार था और राजनीतिक हस्तियों के ऐसे-ऐसे पत्र कि पढ़ो तो पता चलता था कि देश के इतिहास को कैसे तोड़ा-मरोड़ा गया है। उनकी बड़ी इच्छा थी कि लखनऊ का वास्तविक इतिहास संजोया जाए ताकि भावी पीढ़ी को कोई भटका न सके। लेकिन कोरोना काल ने उनका यह संकल्प पूरा नहीं होने दिया। वह बतौर पूर्व महापौर लखनऊ के विकास यात्रा और धरोहरों को भी पुस्तक के रूप में संजो रहे थे। जिसकी पांडुलिपि भी तैयार हो गई थी। उत्तर प्रदेश की राजनीति की सच्चाई कहानी और संसदीय परंपराओं पर भी पुस्तक लिखने की उनकी योजना थी।


पंतगबाज और नाविक

कई देशों की यात्रा करने वाले दाऊ जी विश्व महापौर संगठन के उपाध्यक्ष भी रहे। वह युवक कांग्रेस के भी प्रदेश अध्यक्ष रहे। मोतीलाल मेमोरियल सोसाइटी सहित कई संस्थाओं के अध्यक्ष रहे डॉ. दाऊ जी ने पेरियार पर भी काफी काम किया था। उन्होंने पेरियार की हिंदी में जीवनी भी लिखी। वह अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति के अध्यक्ष भी रहे। आजीवन हिंदी के लिए समर्पित रहे डॉ. दाऊ जी विदेशों में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए पत्रिका भी निकालते थे। वे जितने कुशल विद्वान थे उतने ही कुशल पतंगबाज और नाविक भी। लखनऊ में आई बाढ़ के दौरान उन्होंने खुद नाव चलाकर तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रभानु गुप्त को बाढ़ ग्रस्त इलाकों का दौरान कराया था। 


काले गुलाबों से इंदिराजी का स्वागत

एक बार उन्होंने बताया था कि इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। वह लखनऊ आ रही थीं। बतौर महापौर लखनऊ के प्रथम नागरिक के नाते उन्हें उनका स्वागत करना था। पर, वे उनकी नीतियों का विरोध कर रहे थे। उन्होंने विरोध का अद्भुत तरीका तलाशा। काले गुलाब मंगवाए और उनका गुलदस्ता बनवाकर हवाई अड्डे पर इंदिराजी का स्वागत किया। इंदिराजी ने मुस्कराते हुए उन्हें लिया और कहा, वे इन फूलों को याद के रूप में अपने पास रखेंगी।


कांग्रेसी होते हुए भी गिरफ्तार

डॉ. दाऊ जी बताते थे, ‘शायद इंदिराजी ने वाकई उन गुलाबों का सहेजकर अपने पास रख लिया था। तभी तो आपातकाल लगने पर मुझे भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया, हालांकि मैं कांग्रेस में ही था।  उन पर विधानभवन को क्षतिग्रस्त करने का आरोप लगाया गया। वह 11 महीने जेल में रहे।


गुप्ता जी ने दी डांट की जगह शाबाशी

डॉ. दाऊ जी लखनऊ के महापौर थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक के सरसंघचालक गुरु गोलवलकर का निधन हो गया। खांटी कांग्रेसी महापौर। आरएसएस की नीतियों से जबरदस्त विरोध। पर, सर्वसमावेशी राजनीति के पक्षधर डॉ. दाऊ जी गुप्ता ने कांग्रेसियों के विरोध के बावजूद उनके सम्मान में भी श्रद्धांजलि सभा आयोजित कर दी। कुछ लोगों ने चंद्रभानु गुप्त से शिकायत की। डॉ. दाऊ जी भी तलब हुए। पर, चंद्रभानु गुप्त ने उनकी पीठ ठोंकी और कहा, तुमने काफी अच्छा काम किया है। विभूतियों को राजनीतिक सीमाओं में नहीं बांधना चाहिए। 


सियासत पर सरोकार भारी

भाजपा नेता अमित पुरी बताते हैं कि डॉ. दाऊजी ने सियासत को कभी सरोकारों पर भारी नहीं पड़ने दिया। तत्कालीन कांग्रेस के मेयर ने ऐतिहासिक झंडेवाला पार्क को एक बिल्डर के हाथों बेच दिया था, जिसके खिलाफ मैने याचिका की थी। डॉ. दाऊ जी कांग्रेस के होने के बावजूद इसमें मेरी मदद की थी।


पास में थी वर्ल्ड सिटीजनशिप

डॉ. दाऊ जी की विश्वस्तरीय पहचान थी, जिसका प्रमाण उन्हें 1971 में मिला वर्ल्ड सिटीजन शिप जैसा सम्मान है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य संस्था यह सम्मान उन लोगों को देती है, जिनकी और जिनके कामों की वैश्विक धरातल पर पहचान होती है।

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