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ऊषा चौमर को अब मिलेगा पद्मश्री,कभी मैला ढोने का काम करती थी


गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्मश्री सम्मान से नवाजे जाने वाले लोगों की सूची जारी हुई। इस सूची में ऊषा चौमर का नाम भी शामिल है। राजस्थान की रहने वाली ऊषा मैला ढोने का काम करती थीं। जब ऊषा को पता चला कि सरकार उन्हें पद्मश्री पुरस्कार दे रही है तो वे बेहद खुश हुईं। लोगों से उन्हें बधाइयां मिलने लगीं। 

आखिर कौन हैं ऊषा चोमर? उन्होंने ऐसा क्या किया जिसके कारण सरकार उन्हें देश के इतने बड़े खिताब से नवाज रही है? 


ऊषा चौमर अलवर राजस्थान की रहने वाली हैं। उनके पति मजदूरी करते हैं। उनके तीन बच्चे हैं - दो बेटे और एक बेटी। बेटी ग्रेजुएशन कर रही है और एक बेटा पिता के साथ ही मजदूरी करता है।  


ऊषा बचपन से ही मैला ढोने का काम करती थीं। महज 10 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई। उन्हें लगा कि शायद अब उन्हें इस काम से मुक्ति मिल जाएगी। लेकिन उनके ससुराल वालों ने भी उनसे यही काम करवाया। उस वक्त उनके पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था, लेकिन इस काम से वे बिल्कुल खुश नहीं थीं।


ऊषा बताती हैं कि उनकी जिंदगी तब बदली जब उनकी मुलाकात सुलभ शौचालय के संस्थापक डॉ. बिंदेश्वर पाठक से हुई। 


लोगों के ताने सुनकर ऊषा वह काम छोड़ने वाली थीं। लेकिन एक सही राह न मिलने कारण वे मजबूर थीं।


2003 में डॉ. बिंदेश्वर पाठक अलवर गए। उनका मकसद था मैला ढोने वाले लोगों के साथ काम करना। पर उस वक्त स्थिति ऐसी थी कि कोई भी उनसे मिलने के लिए तैयार नहीं था। 


महिलाओं को किसी तरह महल चौक इलाके में बुलाया गया और उनसे बातचीत की गई। उन महिलाओं का नेतृत्व ऊषा चौमर कर रही थीं। 


डॉ. बिंदेश्वर पाठक ने उन्हें सही राह दिखाई और ऊषा पापड़ और जूट से संबंधित काम करने लगीं। 


2010 तक उन्होंने इस काम में अपने साथ काफी महिलाओं को भी शामिल कर लिया। ये वो महिलाएं थीं जो अलवर में मैला ढोने का काम करती थीं। 


इस काम से ऊषा और बाकी महिलाओं को फायदा मिलने लगा। जैसे-जैसे आर्थिक स्थिति ठीक हुई वैसे ही वे सभी महिलाएं भी मैला ढोने के काम से दूर होती रहीं। 


2003 में ही ऊषा पाठक नई दिशा संस्था से जुड़ीं। 


स्वच्छता की मुहिम के तहत उनके द्वारा किए गए कार्यों की पूरा देश चर्चा कर रहा है।


बता दें कि ऊषा के कारण लगभग 157 महिलाओं का जीवन बदल गया है।


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